नोकिया एक समय में दुनिया की सबसे बड़ी फोन कंपनी थी, अब नोकिया क्यों फेल है?

हेनरी फोर्ड अमेरिका में फोर्ड मोटर कम्पनी के संस्थापक थे। वे आधुनिक युग की भारी मात्रा में उत्पादन के लिये प्रयुक्त असेम्ब्ली लाइन के जनक थे। परंतु इतना होते हुए भी उनकी कार का रंग हमेशा काला होता था। उस समय फोर्ड की कार बहुत पसंद की जाती थी समय के साथ अन्य कंपनियां भी मैदान में आए धीरे-धीरे उदारीकरण कर युग आया और अन्य कंपनियां विभिन्न रंगों की कार ग्राहकों की मांग के अनुसार निकालने लगी परंतु फोर्ड अपने उसी काले रंग पर टिका रहा उसने अपने आप ना बदलना का फैसला किया जिसके कारण लोग अन्य कलरों की गाड़ियां पसंद करने लगे और फोर्ड पिछड़ती गई ।

भारत में भी ऐसा हुआ भारत में भी जैसा कि आपको पता वह मुंबई में काले रंग की टैक्स के चलती थी तो कोई भी इतने रुपए खर्च करके टैक्सी के सामान देखने वाली गाड़ी खरीदना पसंद नहीं करता था इसलिए भारतीय बाजार से भी फोर्ड की कार गायब होने लगी।

उसी प्रकार सर्वप्रथम मोबाइल फोन नोकिया का दबदबा था सबसे पहले सिंगल सिम के उपयोग में आए थे उसके बाद शुरू हुआ दो सिम वाले फोन का युग। परंतु नोकिया अपने आप को बदलना नहीं चाहता था उसे लगा कि वह मार्केट में एक नंबर पर है और उसके लोग नाम के साथ रहेंगे, और जो वह बेचेगा उसे ही लोग खरीदेंगे। अन्य कंपनी दो सिम के मोबाइल में बहुत आगे निकल गई और धीरे-धीरे करके भारत में दो सिम का दौर आ गया और जब तक नोकिआ ने इस चीज को समझा अपने आप को अपडेट करने का प्रयास किया वह भारतीय मोबाइल बाजार से लगभग बाहर हो चुका था यही कारण है कि नोकिया आज भारत में सबसे पिछड़े हुए मोबाइल कंपनियों में से एक है जो कंपनी या व्यक्ति समय और ग्राहक की मांग के अनुसार अपने आप को नहीं बदल पाते वह आज प्रतिस्पर्धा के दौर में इसी प्रकार पीछे रह जाते हैं.

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