दुनिया भर की अन्य खुफिया एजेंसियों की तुलना में भारत का RAW कमजोर क्यों है?

सबसे पहला – 2014 तक, इंदिरा गांधी के निधन के बाद की सरकारों द्वारा वित्तीय मदद का अभाव | जितना महत्वपूर्ण पेट्रोल मोटर के लिए है, उतना ही ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए पैसा है|

महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगो की गतिविधियां :- जैसे बिके हुए जज, अफसर – जैसे रॉ में एक अफसर रहा था रबिन्दर सिंह , धर्म , जातिवादी , क्षेत्रवादी ( अधिकाँश नहीं, केवल वे जिनके हाव भाव अलगाववादी हैं जैसे तमिलनाडु की मौजूदा विपक्षीय पार्टी ) | इनका ज़िक्र इसलिए किया क्योकि जब भी संसद में राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध कोई कोई प्रस्ताव आता है तो ये उसका समर्थन करते हैं, यदि राष्ट्रीय सुरक्षा को कड़ी करने का प्रस्ताव आता है तो अड़ंगा डालते है।

रॉ के अध्यक्ष के चुनाव में भी दखलंदाज़ी, एक राष्ट्रीय पार्टी की अध्यक्षा ने 2004 – 09 तक अपने एजेंडे के लिए रॉ में भी दखलंदाज़ी की कोशिश की। परिणामस्वरूप यह समय इंटेलिजेंस फेलियर के हिसाब से सबसे कठिन दौर था। और तो और उस अध्यक्षा का एजेंडा मात्र सियासी नहीं , बल्कि कुछ इस प्रकार था की यह जानबूझकर देश को खोखला करने की साज़िश लगे। जैसी साजिशे तब हुई और देश के ही खिलाफ देश के अपने ही मंत्रालय में हुई ऐसी इससे पहले दो ही बार हुई जिन्हे ऊपर लिखे जवाबो में बता दिया गया है।और इससे हुआ नुक्सान भी ज्ञात है।

तीसरे पॉइंट को और आगे बढ़ाते हुए एक और साज़िश के बारे में लिखता हु, रॉ को संसद के अधीन लाना| यह घटित हुआ था २०११ में , तब कि सत्तारूढ़ पार्टी के एक सदस्य ने अपनी अध्यक्षा के निर्देशानुसार यह प्रस्ताव लाया जो कि ख़ारिज हो गया। ।यह बिल पास होने की सूरत में जो जानकारी केवल प्रधानमंत्री, रॉ, रक्षा सचिवालय के पास होती है वो अब बड़े आराम से दुश्मन के हाथो लग जाती। यह सीआईए की पुरानी मंशा भी रही है , इससे रॉ को कितनी फंडिंग आती है, कौन से ऑपरेटिव कहा काम करते है इसे पता लगाना आसान हो जाता है। गौरतलब हो आरटीआई आने के समय भी सीआईए की ऐसी मंशा थी कि रक्षा विभाग को इसमें कवर करने की और ये भी की राजनैतिक दल इससे अछूते रहें। तब की सरकार में कुछ समझदार सहयोगियों , तत्कालीन प्रधानमंत्री , रक्षा विशेषज्ञों के इससे असहमत होने के कारण रक्षा विभाग को बख्श दिया गया वर्ना देश आज सच में टूट चूका होता। उस प्रस्ताव का लिंक दिया गया है| 

सबसे बड़ी बात कमज़ोर सरकारों के रहने के कारण रॉ के नेटवर्क में सेंध लग जाना |

इंटेलिजेंस फिर भी एकत्र हो जाती है, किन्तु अधिकांशतः उस पर अमल नहीं हो पता। इसके विभिन्न कारण है जिसे बाद में कवर किया जायेगा।

एक पुरानी कहावत है; इस देशपर जब भी हमला हुआ है, किले की दीवारे दुश्मन को किसी अंदर वाले ने पार करवाई हैं। इसी प्रकार विभिन्न एजेंसियों द्वारा पाले या उन्ही के द्वारा पैदा किये गए देशद्रोही राजनेता, अफसरशाह। कौन अपनी ड्यूटी कर रहा है, कौन किसी अन्य एजेंसी के लिए काम कर रहा है यह पता लगाना आसान है , यदि उस राजनेता की निति देशद्रोहियो की हौसलाअफ़ज़ाई हो तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध कानून लेन मंशा रखता हो , यदि कोई जज देशद्रोही को बचने का काम करता हो, कोई मीडिया हाउस तथ्यों को तोड़ मरोड़ के दिखता हो, कोई अफसरशाह अपना कार्य सही ढंग से न करता हो।

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