जानिए भगवान को भोग लगाने से प्रसाद पर क्या असर पड़ता है?

कभी आपने ‘ॐ जय जगदीश’ आरती सुनी है?

उसमें एक बहुत सुंदर पंक्ति है, “तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा”।

अब जब जन्म लिया था तो कितने किलो बर्फ़ी ले कर पैदा हुए थे हम में से कोई भी?

जो आए यहीं कमाया, खाया और मरणोपरांत भी यहीं छूटेगा तो हमारा तो वैसे भी कुछ नहीं है।

यदि प्रभु को इस भाव से भोग लगायें जैसा कि ‘ॐ जय जगदीश’ आरती में होता है, तो एक संतुष्टि मिलती है। कभी आपने सुना भी होगा और चखा भी होगा, मंदिर में मिलने वाली खीर हमेशा घर में बनने वाली खीर से स्वादिष्ट लगती है। नवरात्रि में बना हलवा-पूरी किसी और दिन बनने वाले हलवा-पूरी से बहुत स्वादिष्ट लगता है। आख़िर क्यूँ? आटा भी वो ही, सूजी भी। फिर क्या वजह हो सकती है?

भगवान को अर्पण करने के लिए आप कुछ भी बनाएँगे, एक सदभाव के साथ बनायेंगे। भोग भी मन से लगवाएँगे और कामना करेंगे कि प्रभु उसे स्वीकार करे। भगवान को भोग लगवाने के बाद एक संतुष्टि सी हो जाती है कि प्रभु ने खा लिया, अब हमारे खाने के लिए अमृत हो गया है।

भाव में ही सब है।

किसी घर आए को आप त्योरियाँ दिखा कर, माथे पर बल डाल कर चाय का कप दें और बेशक साथ में पचास पकवान बना कर दे दें, उसका मन ही नहीं करेगा किसी चीज़ को खाने का और किसी से प्यार से बात करें व उसे केवल एक कप चाय पिला देंगे तो भी वह दुआ देगा।

सब भाव की बात है। भगवान को भोग लगाने के समय भाव बहुत सकारात्मक होता है, ऐसा लगातार हार रोज़ करने से व्यक्तित्व में भी सब्र आता है, सकारात्मकता आती है और भोग लगाने के विचार अच्छे विचार से पका भोजन ज़रूरी रूप से शरीर में भी फ़ायदा करता है। अंग्रेज़ी में कहते हैं ना, “यू आर व्हट यू ईट’ मतलब कि जैसा अन्न वैसा मन।

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