जानिए ज्योतिष शास्त्र की हमारे जीवन में क्या आवश्यकता है?
भारतीय संस्कृति का मूलाधार वेद है वेद से हमे अपने धर्म और सदाचार का ज्ञान प्राप्त होता है हमारी पारिवारिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, एवं दार्शनिक विचारधाराओ का स्रोत भी वेद ही है भारतीय विद्याएँ वेदो से ही प्रकट हुई है वेदो के छः अंग के गये है –
1– शिक्षा 2- कल्प 3- व्याकरण
4- निरुक्त 5- छन्द तथा 6- ज्योतिष।
इन्हे षड- वेदांगो की संज्ञा दी गयी है महर्षि पाणिनि ने ज्योतिष को वेद पुरुष का नेत्र कहा है – ” ज्योतिषामयनं चक्षुः ” जैसे मनुष्य बिना चक्षु इन्द्रिय के किसी भी वस्तु को देखने मे असमर्थ होता है ठीक वैसे ही वेद शास्त्र या वेद शास्त्र विहित कर्मो को जानने के लिए ज्योतिष का अन्यतम् महत्व सिद्ध है ।
भूतल ,अन्तरिक्ष एवं भूगर्भ के प्रत्येक पदार्थ का त्रिकालिक यथार्थ ज्ञान जिस शास्त्र से हो वह ज्योतिष शास्त्र है अतः ज्योतिष ज्योति का शास्त्र है ज्योतिष शास्त्र से त्रैकालिक जाना जा सकता है वेद के अन्य अंगो की अपेक्षा अपनी विशेष योग्यता के कारण ही ज्योतिष शास्त्र वेदभगवान का प्रधान अंग निर्मल चक्षु माना गया है और इसका अन्य कारण यह भी है कि भविष्य जानने की इच्छा सभी युगो मे मनुष्यो के मन मे सर्वथा प्रबल रहती है जिसकी परिणति यह ज्योतिष शास्त्र है ।