जानिए एक-एक साँस के लिए लड़ते भारत के लिए क्यों कम पड़ गई ऑक्सीजन की सप्लाई?

इस सप्ताह की शुरुआत से ही दिल्ली के कई बड़े अस्पतालों से बार-बार ऑक्सीजन का स्टॉक लगभग ख़त्म होने की ख़बरें आ रही थीं.

मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर केंद्र सरकार से अपील करते हुए कहा था कि राजधानी में मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाई जाए. इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से कहा कि वो ऑक्सीजन री-फ़िलिंग की सुविधा और बढ़ाए.

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से लगभग 60 मरीज़ मौत की कगार पर थे. काफ़ी जद्दोजहद के बाद आख़िरकर शुक्रवार को एक ऑक्सीजन टैंकर अस्पताल पहुँचा. लकिन देश में कोरोना के मामले जिस तेज़ी से आ रहे हैं उससे इसका हेल्थकेयर सिस्टम चरमरा गया है.

देश के सबसे अमीर शहरों से लेकर दूरदराज़ के इलाक़ों तक का, एक ही हाल है.

एक-एक साँस की लड़ाई
पश्चिम में महाराष्ट्र और गुजरात से लेकर उत्तर में हरियाणा और मध्य भारत में मध्य प्रदेश तक सभी जगह मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी पैदा हो गई है. उत्तर प्रदेश में तो कुछ अस्पतालों ने बाहर ‘ऑक्सीजन आउट ऑफ़ स्टॉक’ की तख़्ती लगा दी है.

लखनऊ में अस्पतालों ने तो मरीज़ों को कहीं और जाने के लिए कहना शुरू कर दिया है. दिल्ली के छोटे अस्पताल और नर्सिंग होम भी यही कर रहे हैं. कई शहरों में मरीज़ों के बेहाल परिजन ख़ुद सिलिंडर लेकर री-फ़िलिंग सेंटर के बाहर लाइन लगा कर खड़े दिख रहे हैं.

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हैदराबाद में तो एक ऑक्सीजन प्लांट के बाहर जमा भीड़ पर क़ाबू पाने के लिए बाउंसरों को बुलाना पड़ा.

कोरोना के शिकार कई मरीज़ इलाज के इंतज़ार में दम तोड़ रहे हैं. जिन लोगों को साँस लेने में ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है उनका इलाज करने में अस्पतालों को दिन-रात एक करना पड़ रहा है. जिन लोगों को क़िस्मत से बेड मिल गई है, उनकी साँसें बचाने के लिए अस्पताल भारी जद्दोजहद में जुटे हैं. सोशल मीडिया और व्हॉट्स ग्रुप पर ऑक्सीजन सिलिंडरों की माँग करती अपीलों की भरमार है.

पिछले एक सप्ताह से भारत अपने भारी दु:स्वप्न से जूझ रहा है. मेडिकल ऑक्सीजन की ज़बरदस्त क़िल्लत ने यहां दहशत पैदा कर दी है.

कोरोना से पैदा हालातों को देख चुके डॉक्टरों से लेकर अफ़सरों और पत्रकारों को लग रहा है कि उनकी आंखों के सामने से ऐसे मंज़र पहले भी गुज़र चुके हैं. सात महीने पहले जब कोरोना के मामले उफ़ान पर थे तब भी ऑक्सीजन की ऐसी ही क़िल्लत पैदा हुई थी. लेकिन इस बार हालात बेहद ख़राब हैं.

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जबकि हक़ीक़त यह है कि देश में ऑक्सीजन का जितना प्रोडक्शन होता है उसका सिर्फ़ 15 फ़ीसदी हिस्सा ही अस्पताल इस्तेमाल करते हैं. बाक़ी 85 फ़ीसदी का इस्तेमाल उद्योगों में होता है.

सीनियर हेल्थ अफ़सर राजेश भूषण के मुताबिक़ कोरोना संक्रमण की इस दूसरी लहर के दौरान देश में ऑक्सीजन सप्लाई का 90 फ़ीसद अस्पतालों और दूसरी मेडिकल ज़रूरतों के लिए इस्तेमाल हो रहा है. जबकि पिछले साल सितंबर के मध्य में जब कोरोना की पहली लहर के दौरान संक्रमितों की संख्या सबसे ज़्यादा थी तो हर दिन मेडिकल ज़रूरतों के लिए 2700 टन ऑक्सीजन की सप्लाई हो रही थी.

उस दौरान देश में हर दिन कोरोना संक्रमण के क़रीब 90 हज़ार नए मामले आ रहे थे. लेकिन इस साल अप्रैल में ही दो सप्ताह पहले तक एक दिन में कोरोना संक्रमण के नए मामले बढ़ कर 1,44,000 तक पहुँच गए. अब तो हर दिन संक्रमणों की संख्या बढ़ कर दोगुना से अधिक यानी तीन लाख तक पहुँच गई है.

“सरकार भांप नहीं पाई, हालात इस क़दर बिगड़ेंगे”
पुणे में कोविड अस्पताल चलाने वाले डॉ सिद्धेश्वर शिंदे कहते हैं, “हालात इतने ख़राब हैं, जब तक कि आईसीयू बेड का इंतज़ाम नहीं हो सका तब तक हमें कुछ मरीज़ों का इलाज कार्डियक एंबुलेंस में करना पड़ा. आईसीयू बेड मिलने से पहले हमें उन्हें इन एंबुलेंसों में 12 घंटे तक रखना पड़ा. देश भर में जितने कोरोना संक्रमण के मामले आ रहे हैं, उनमें पुणे दूसरे नंबर पर है. मौतों के मामले में यह तीसरे नंबर पर है.”

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