जानिए आखिर साड़ियों पर फॉल लगाने का प्रचलन कब से आरंभ हुआ?

सन 1975 से ।

यह वह दौर था जब महिला और पुरुषों में बेल-बॉटम पैंट पहनने का क्रेज बढ़ रहा था , जिसकी मोहरी सड़क को छूती थी । समस्या यह थी बेल-बॉटम नीचे से घिसकर फट जाती थी जिस कारण और बहुत ही भद्दी और बेकार लगती थी । इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रथम चरण में वाईकेके की पीतल वाली चैन बेल बॉटम के पीछे सिल कर लगाई जाती थी जो कि देखने में काफी फैशनेबल और अच्छी लगती थी ।

साड़ी का पहनावा अच्छा तो था लेकिन सिल्क और महंगी साड़िया मैं दो समस्याएं थी एक- तीन चार बार पहनने पर पाइप बन जाना और कुछ बार पहनने से घिसकर फट जाना , जो की महंगी साड़ी के लुक को खराब करती थी । पाइप की समस्या प्रेस करने से काफी हद तक ठीक हो जाती थी लेकिन यह पूर्ण उपचार नहीं था इसके लिए फिर चरख की जाने लगी ।

चरक नीचे से साड़ी को तो सीधा कर देता था लेकिन फटने की समस्या ज्यों की त्यों थी , फिर सन 1975 में वही बेल बॉटम वाला आईडिया मुंबई के अंदर आया , महिलाओं ने अपनी महंगी साड़ियों में नीचे वाईकेके की चैन लगवाना शुरू कर दिया जोकि एक महंगा प्रोसेस था सस्ती साड़ियों में लगवाना सबके लिए संभव नहीं था लेकिन समस्या यह थी कि चरख कैसे करें , उसी दौरान विकल्प के तौर पर मुंबई में फाल लगाने की शुरुआत हुई ।

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