चोरों को मंत्री कुमार द्वारा सजा की कहानी

पाटली पुत्र नगर में जितशत्रु नामक राजा को कुमार नामक अपार बुद्धि का भंडार मंत्री था। जब कोई अपराधी आता तब वह उसकी संपूरण तहकीकात करवाकर सजा एवं दंड सुनाता था। एक दिन की बात है। कोतवाल ने चार चोरों को कुमार मंत्री के सामने हाजिर किया।

मंत्री ने अपनी बुद्धि से तहकीकात करके हरेक को सजा सुनायी। पहले छोर को कहा तुम सरल व्यक्ति होकर भी ऐसा काम करते हो ? क्या तुम्हे यह शोभा देता है ? जाओ, फिर से कभी ऐसा काम मत करना। दूसरे चोर को बुलाकर सुनाया है मूरख शिरोमणि अच्छे कुल में जन्म लेकर भी ऐसा नीच काम करते हो। क्या तुम्हें थोड़ी भी वरम नहीं आती। तुम जाओ और अपने मुंह पर स्याही लगाकर फिर से अपना मुंह मत बताना। तीसरे चोर को बुलवाकर फटकारा तुमसे तो पत्थर अच्छा है और उसे गरदन फाड़कर बाहर निकाल दिया।

चौथे चोर को काला मुँह करके उल्टे मुँह गधे पर बिठाकर संपूर्ण नगर में इसकी यात्रा निकाला ऐसा हुकुम दिया। अपराध एक समान था, फिर भी चारों को अलग – अलग सजा मंत्री ने क्यों सुनायी सभा में इसका भारी आश्चर्य हुआ। मंत्री के हृदय में रही अलग – अलग भावना से दी आयी सजा से चारों के हालात क्या हैं, यह जानने के लिए राजा ने अपने खास सेवकों को उनके पीछे भेजा।

एक प्रहर समाप्त होने पर सेवक खबर लेकर आए और राजा से बोले – हे ! महाराज, पहला चोर जिसे कोमल शब्दों में मंत्री ने समाया था, उससे यह अपमान सहन नही हुआ और घर जाकर अपने दांतों के बीच जीभ काटकर उसने आत्महत्या कर ली। दूसरा जिसे मुँह नहीं बताने की बात की थी, वह हमेशा के लिए यह नगर छोड़कर परदेश चला गया। तीसरा जिसे सभा के बीच सजा सुनायी थी, वह वरम के मारे पानी – पानी हो गया और घर के बाहर निकलने की हिम्मत भी नही करता।

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