चाणक्य स्वयं राजा क्यों नहीं बने? जानिए

एकबार सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने आचार्य तथा मन्त्री आचार्य चाणक्य को कुछ कम्बल दिया गरिबों को बा॑टने ने केलिए और उसी रात कुछ चोरों ने कम्बल चुराने केलिए उनके झोपड़ी में प्रवेश किया । आचार्य चाणक्य एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक तपस्वी भी थे इसलिए वे एक मन्त्री होते हुए भी नगर के बाहर एक झोपड़ी में रहते थे ।

तो उन चोरों ने आश्चर्य होकर देखा कि सर्दी के रात है फिर भी आचार्य चाणक्य और उनके पत्नी इतनी सर्दी में भी बिना कम्बल में एक चटाई में सोई हुई है । चोरों ने उनको जगाकर पुंछा कि इतनी सर्दी में भी वे बिना कम्बल के चटाई में कियो॑ शो रहें हैं , जबकि उनके पास कम्बल का ढेर है ।

जबाव में उन्होंने कहा कि वह कम्बल राजा ने गरीबों केलिए दिया है सुबह होते ही सारे कम्बल गरीबों को बा॑ट दे॑गे । गरीबों को दिया हुआ कम्बल उपयोग करने का उनको अधिकार नहीं है , वे विरक्त है , तॖप्त है । उनके बातें सुनकर उन चोरों को अपने कार्यो पर पश्चाताप हुआ और आचार्य चाणक्य से क्षमा मा॑गकर वह भी सज्जनो॑ का जीवन जीने लगा ।

आचार्य चाणक्य वैराग्य भाव से पूर्ण थे । उन्होंने जो भी किया स्वयं केलिए नहीं बल्कि राष्ट्र केलिए किया । उन्होंने राष्ट्रहित केलिए ही धननन्द के विरुद्ध चन्द्रगुप्त मौर्य को चुना था स्वयं राजा बनने केलिए नहीं । यही कारण है कि आचार्य चाणक्य स्वयं राजा नहीं बने ।

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