चन्द्र गुप्त, विक्रमादित्य तथा छत्रपति शिवाजी महाराज में क्या-क्या समानताएं थीं? जानिए
चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य तथा शिवाजी महाराज में समय अंतराल का अंतर जरूर है लेकिन दोनों ही भारत के युग प्रवर्तक रहे हैं। उनमें कुछ मूलभूत समानताएं हैं जो इस प्रकार है:
१ ) दोनों ही महायोद्धा तथा परक्रमी सम्राट थे जिन्होंने भारतवर्ष को अपनी वीरता से गौरवान्वित किया।
२) दोनों का ही ध्येय सनातन धर्म को स्थापित तथा संरक्षित करना रहा है।
३) अपने पराक्रम की वजह से जहां चन्द्र गुप्त द्वितीय ने ‘विक्रमादित्य’ तथा ‘शकारि’ की उपाधि प्राप्त की थी वहीं शिवाजी महाराज ने ‘छत्रपति महाराज’ की उपाधि प्राप्त की थी।
४ ) दोनों ही स्त्री अस्मिता तथा उनके सम्मान के रक्षक थे जिसे मैं दोनों के जीवन से जुड़े हुए एक आध प्रकरण द्वारा साबित करने की छोटी कोशिश कर रही हूं:
चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य :
विक्रमादित्य ने जहां अपने भाई की पत्नी ध्रुवस्वामिनी की सम्मान की रक्षा हेतु शक से अपने भाई की ईक्षा के विरुद्ध युद्ध किया तथा बाद में अपमानित ध्रुवस्वामिनी को सम्मान सहित पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
एक अन्य उदाहरण में उनका स्त्रीयों के प्रति उच्च नैतिक अंदाज देखने को मिलता है:
एक बार की बात है एक तारतार राजकुमारी चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के शोर्य तथा सौंदर्य पर मुग्ध हो गई और उनसे प्रणय निवेदन करने हेतु उनके युद्ध शिविर में पहुंच गई और कहने लगी कि, मुझे आप ही की तरह एक शानदार पुत्र की अभिलाषा है। यह सुनकर विक्रमादित्य ने तुरंत झुककर उस युवा राजकुमारी के चरण छुए और कहने लगे कि, ” हे माता आज से ही मैं आपका पुत्र हुआ।”
उस राजकुमारी को काटो तो खून नहीं रहा और वह विक्रमादित्य के शिविर से अजीब मनोदशा के साथ वापस लौट गई।
तो ऐसे थे वीर विक्रम जिन्होंने स्त्री सम्मान को ठेस पहुंचाए बिना ही मर्यादा के साथ अपनी अनिच्छा भी प्रर्दशित कर दिया।
शिवाजी महाराज
कुछ इसी तरह शिवाजी के दरबार में उनके कुछ सैनिक आए और कहने लगे की आप के लिए एक नायाब तोहफा लाएं हैं जब शिवाजी ने देखा कि एक बेहद सुंदर स्त्री को वे सब पालकी में बैठा कर लाए हैं तब वे उस महिला को देखकर कहने लगे कि,” हे माता मै यदि आप का पुत्र होता तो आपकी ही भांति सुन्दर होता। “
उन्होंने अपने दरबारियों तथा सैनिकों को डांटते हुए कहा कि जो काम वह करते हैं यदि हम भी करेंगे तो हममें और उनमें क्या अंतर रह जायेगा। वह महिला रहीम खानखाना की बहु थी जिसे शिवाजी ने सम्मान सहित उनके घर वापस भिजवा दिया था।