गोवर्धन पर्वत कि ऊँचाई दिन पर दिन छोटी क्यों होती जा रहे है?

इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए भगवान कृष्ण ने गिरिराज यानि गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठा लिया था. और इंद्र के प्रकोप से हो रही भयंकर वर्षा से संपूर्ण गोकुलवासियों की रक्षा की थी उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि थी. यही कारण है कि हर साल इसी तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है.

मथुरा में आज भी यह पर्वत मौजूद है जिसकी परिक्रमा लगाने के लिए साल भर श्रद्धालुओं का तांता वहां लगा ही रहता है. 21 किलोमीटर लंबी इस परिक्रमा के दौरान ऊंचे-नीचे, पथरीले रास्ते भी आते हैं लेकिन फिर भी भक्त ना थकते हैं ना रुकते हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पर्वत की ऊंचाई दिन ब दिन घटती जा रही है!

ऊंचाई कम होने का यह है कारण

पौराणिक मान्यताओं की माने तो एक ऋषि के श्राप के चलते ही यह पर्वत प्रतिदिन घटता जा रहा है. कथा के मुताबित – एक बार ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के पास से होकर गुजर रहे थे तभी उन्होंने इस पर्वत को देखा और इसकी खूबसूरती पर मोहित हो गए. तब ऋषि ने द्रोणांचल से आग्रह किया कि चूंकि वो काशी में रहते हैं इसीलिए अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए ताकि मैं इसे काशी में स्थापित कर सकूं. यह बात सुनकर गोवर्धन उनके साथ जाने को तैयार हो गए लेकिन उन्होंने जाने के लिए एक शर्त रखी.

क्या थी वह शर्त

गोवर्धन पर्वत ने जो शर्त रखी थी उसके मुताबिक जहां पर भी वो ऋषि गोवर्धन पर्वत को रख देते तो वहीं स्थापित हो जाता. पुलस्त्य ऋषि ने वचन दे दिया और बात मान ली. ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को हथेली पर उठाया और जाने लगे. लेकिन जब रास्ते में बृजधाम आया तो गोवर्धन को याद आया कि भगवान श्रीकृष्ण बाल्यकाल में हैं तब गोवर्धन पर्वत ऋषि पुलस्त्य के हाथ पर अपना भार बढ़ाने लगा, जिससे पुलस्त्य ने गोवर्धन पर्वत को वहीं रख दिया और वचन तोड़ दिया. हालांकि वचन टूटने के बाद भी ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को उठाने की भरसक कोशिश की लेकिन वो सफल ना हो सके. तब गुस्से में आकर ऋषि ने गोवर्धन को श्राप दे दिया कि तुम्हारा विशालकाय कद अब रोज कम होता रहेगा.

कहा जाता है कि गोवर्धन पर्वत 5 हज़ार सालों पहले तक करीब 30 हज़ार मीटर ऊंचा हुआ करता था लेकिन आज इसकी ऊंचाई केवल 25 -30 मीटर ही बची है.

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