गणेश जी से संबंधित एक चुटकी चावल की क्या कथा है? जानिए
ये कथा मेरे बाल्यकाल की स्मृतियो की सबसे प्रिय कथा है क्योंकि इस के कारण मेरी श्रद्धा गणपति जी मे आरम्भ हुई ,
- हमारी संस्कृति में जब भी हमारे परिजन हमे कोई कथा सुनाते तो उसका पात्र कोई धर्मिक या उच्च आदर्शों वाला ही होता था जिसके द्वारा बालक भी उन्ही आदर्शों पर चलने का प्रयास करते है और उन धार्मिक चरित्रों के विषय मे ज्ञान की वृद्धि भी होती है।
ये कथा सभी ने एक बार अवश्य सुनी होगी और मुझे इस कथा में वही आनन्द मिलता है जो बालपन में मिलता था।
दयालु स्त्री
- एक स्त्री थी उसके पति और सात पुत्र काल के ग्रास बन गए अतः वो ग्राम के बाहर एक कुटिया में रहने लगी और उसके समीप कोई न था अतः उसने एक पत्थर को अपना पुत्र मान लिया था उसको नहलाती धुलाती प्रेम से दूर्वा के आसन पर बिठाती।
- ग्रामवासी जो भी दयापूर्वक दे देते वही प्रथम उस पत्थर को खिलाती और स्वयं ग्रहण करती थी इसी प्रकार उसका जीवन व्यतीत हो रहा था।
- गणेश जी को एक दिन उस स्त्री के दुःख हरने की इच्छा हुई अतः वो एक बार एक बालक का रूप धर कर पृथ्वी लोक आते है और पृथ्वी के समस्त भक्तों की परीक्षा लेने का विचार करते हैं।
- एक चुटकी चावल और एक दीपक में दुग्ध लेकर सभी के समीप जाते है और उनसे खीर बनाने का अनुरोध करते हैं ।
- एक चुटकी चावल और दीपक से दुग्ध की खीर बनाने की बात सुनकर लोग उन पर हंसने लगे, बहुत भटकने के पश्चात भी किसी ने खीर नहीं बनाई।
- वही स्त्री कुटिया के बाहर बैठी थी , तभी गणेश जी वहां से पुकारते हुए निकले कि “कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे…”.
- वो बहुत कोमल ह्रदय वाली स्त्री थी उसने सोचा बालक को बहलाने के लिए स्वयं के घर से दुग्ध और चावल की खीर बना दूँगी अतः उसने कहा “पुत्र, मैं तेरी खीर बना देती हूं.”
- गणेश जी ने कहा, “माता, अपने घर में से दुग्ध और चावल लेने के लिए बर्तन ले आओ.”
- स्त्री एक कटोरी लेकर जब झोपड़ी बाहर आई तो गणेश जी ने कहा अपने घर का सबसे बड़ा पात्र लेकर आओ।
- स्त्री ने सोचा कि चलो ! बालक का हॄदय रख लेती हूं और भीतर जाकर वह घर सबसे बड़ा पात्र लेकर बाहर आई.
- गणेश जी ने दीपक में से दुग्ध पात्र में उडेलना आरम्भ किया तब, स्त्री के आश्चर्य की सीमा न रही, जब उसने देखा दुग्ध से सम्पूर्ण पात्र भर गया है.
- एक के पश्चात एक वह पात्र झोपड़ी बाहर लाती गई और उसमें गणेश जी दुग्ध भरते चले गए।
- इस प्रकार समस्त पात्र दुग्ध और चावल से सम्पूर्ण रूप से भर गए. गणेश भगवान ने बुढ़िया से कहा, “मैं स्नान करके आता हूं तब तक तुम खीर बना लो. मैं लौटकर आकर खाऊँगा.”