क्यों चीन इतना अमीर है और भारत इतना गरीब? जानिए
दुःख की बात है कि यहाँ पर जितने कारण बताये गए है, अधिंकांश बचकाने है। किसी शोध पर आधारित नहीं। हर समस्या के कारण में भ्रष्टाचार और जातिवाद बता देना आम बात है। ये हर समस्या के कारण बताये जाते है।
कोई पूछे कि भ्रष्टाचार का क्या कारण है ? तो जबाब आएगा कि लोग भ्रष्ट है या नेता भ्रष्ट है। अब लोग क्यों भ्रष्ट हैं , क्या प्रकृति ने भारत के लोगों को अलग बनाया है ? एक तो विश्व भर के लोगों के DNA में इतना अंतर नहीं है कि उनकी मूल प्रकृति को अलग मान लिया जाय। दूसरे, कुछ देश हैं जिनका विभाजन ६०-७० साल पहले ही हुआ है , यानि दोनों हिस्सों के लोगो की मानसिकता व प्रकृति एक ही मानी जा सकती है। जैसे उत्तरी कोरिया व दक्षिणी कोरिया। पर आज उनकी अर्थव्यवस्था में उनमें बड़ा अंतर है। लोगों को प्रवृति या प्रकृति को लेकर दिए जाने वाले तर्क बहुत ही उथले है।
1978 तक भारत और चीन की अर्थव्यस्था बराबर थी। वहाँ भी अत्यधिक गरीबी थी , भ्रष्टाचार व्याप्त था। लगभग उस समय के भारत के जैसे ही। फिर चीन आगे कैसे हो गया ? उत्तरी कोरिया व दक्षिणी कोरिया विभाजन के समय एक से ही थे फिर दक्षिणी कोरिया इतना आगे कैसे हो गया ?
जो भी कारण दिए जाये वो विश्व में हर देश पर और हर समय लागू होने चाहिए। यही ऐसा तभी उन कारणों को गम्भीरता से लिया जा सकता है।
देशो के आर्थिक विकास , भ्रष्टाचार इत्यादि पर लम्बे शोध और कई शोध कार्यों के अध्ययन के बाद ये संक्षिप्त विचार रख रहा हूँ।
भ्रष्टाचार व गरीबी का एक ही मूल
किसी भ्रष्टाचार की समस्या की बात हो और जन साधारण से पूछा जाय कि भ्रष्टाचार की समस्या कैसे सुलझे तो अधिकांश का जबाब आता है सख्ती की जाए , ईमानदार लोग रखे जाए।
पर इसको ठीक से समझने के लिए भ्रष्टाचार की उन समस्याओं को देखना चाहिए जो भारत में 1991 के पूर्व प्रबल थी पर अब बिल्कुल समाप्त हो चुकी हैं।
१. फोन लगवाने या ठीक करवाने के लिए रिश्वत।
एक जमाना था कि फोन कनेक्शन एक कठिनता से मिलती थी। इसके लिए रिश्वत या संपर्कों की आवश्यकता होती थी।
२. बैंक खाता खुलवाने के लिए रिश्वत
इन समस्याओं को हल करने के लिए ना तो कोई सख्ती की गई न ही लोगो को बदला गया। फिर ये समस्याए हल कैसे हुई ?
इन कारणों को ठीक से समझने के लिए आपको 1991 से पूर्व भारत में व्याप्त लाइसेंस राज समझना होगा। अगर आपके लिए लाइसेंस राज नया शब्द है तो भ्रष्टाचार के कारणों को सही से समझने के लिए ये विषय अच्छी शुरुवात है। भारत का आर्थिक इतिहास हमे पढ़ाया नहीं जाता, इसलिए सामान्यतः अधिकांश जनता भयावह लाइसेंस राज से परिचित नहीं है और ना ही उसके हटने पर आयी क्रांति से परिचित है।
नए नए आजाद भारत के लिए सब कुछ ही नया प्रयोग था। संविधान तो हमने लगभग पश्चिम से ले लिया पर आर्थिक नीतियाँ नहीं ली। हमने सोचा कि गरीब देश पर अमीर देशो की नीतियां काम नहीं करेंगी।
हमने नियम ऐसे बनाए की कोई कम्पनी बड़ी न हो पाए। इसका एक उदाहरण है बजाज स्कूटर के लिए लम्बी प्रतीक्षा सूची (वेटिंग लिस्ट ). अब आप सोचेंगे कि जब बाजार में स्कूटर की माँग है तो फिर कम्पनी ज्यादा स्कूटर क्यूँ नहीं बना देती। इससे तो और ज़्यादा लोगों को रोज़गार मिलेगा। रोजगार बढ़ेगा तो सरकार को कर देने वाले बढ़ेंगे। जिन लोग स्कूटर की आवश्यकता उन्हें स्कूटर मिल जायेगा तो उनके काम धंधो में तेजी आएगी। हर तरफ लाभ था तो फिर कम्पनी ज्यादा स्कूटर क्यों नहीं बनाती थी , जैसा अब होता है कोई कम्पनी उतने स्कूटर बनाती है जितने बिकने की उम्मीद हो । क्या कम्पनी के पास ज्यादा स्कूटर बनाने की क्षमता नहीं ? जी नहीं ऐसा नहीं था। इसका कारण था लाइसेंस राज। कोई कम्पनी एक निश्चित संख्या से अधिक स्कूटर बना नहीं सकती थी। सरकार चाहती थी कि अन्य कम्पनियाँ स्कूटर बनाये। अब जो बना सकते है , उन पर रोक लगी है। कोई नया बंदा इतना धन लगा कर रिस्क लेगा क्या ? हो सकता है लोग फिर भी बजाज के लिए ही इन्तज़ार करें। यानी सरकार ने (या कहें कि हम ने ) अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मार ली।
ऐसा स्कूटर में ही नहीं हर उद्योग में हो रहा था। जो अच्छे उद्योग थे उनको सीमा से अधिक बढ़ने न दिया जाए। अब उद्योगपति के लिए सीमा बढ़वाने का एक ही मार्ग है , मंत्री को रिश्वत। अब इस भ्रष्टाचार के मूल में क्या है ? भ्रष्ट व्यापारी , भ्रष्ट मंत्री ? जी नहीं। इसके मूल में गलता नीति , यानि लाइसेंस राज। जब नीति बदली तो तो इस भ्रष्टाचार के कारण समाप्त हो गए।
कुछ क्षेत्रों में ४-५ से अधिक अच्छी कम्पनियाँ नहीं होती ये सामान्यतः देखने में आता है। सरकार चाहती कि हर क्षेत्र में 1000 कम्पनियाँ हों। इस इन्तज़ार ४४ वर्ष गुजर गए पर ऐसा नहीं हुआ।
जब एक कम्पनी बड़ी होती है तो उसमे काम करने वाले लोगों की सँख्या बढ़ती है। रोजगार आता है। ये लोग जब अपनी आय को खर्च करते है तो उससे दुसरे रोजगार आते हैं। सरकार को मिलने वाला कर (टैक्स ) बढ़ जाता है। जिसको सरकार कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च कर सकती है। समाज को विकास होने लगता है तो नई नई रचनाये होने लगती है। देश बाहर भी अपने उत्पाद बेचने लगते है।
विश्व के विकसित देशो की कम्पनियाँ गरीब देशो के कुल सकल उत्पाद (GDP) के बराबर धन अर्जित कर पाती है। उनके पास शोध पर खर्च करने के पर्याप्त धन आ जाता है। जिससे वह और बेहतर उत्पाद बनाती है। बेहतर होने से उनके उत्पादों की माँग विश्व बाजार में अधिक होती है। और देश में बाहर से भी धन आता है तो और भी रोजगार बढ़ता है।
हमने अपनी कम्पनियों को खुद ही रोक लिया।
इसी तरह कुछ फ़ोन के क्षेत्र में केवल सरकारी कम्पनी को आने का अधिकार था। यानि इस देश का नागरिक होते हुए भी मुझे इस देश फ़ोन कम्पनी खोलने का अधिकार नहीं था। हो सकता है मैंने कुछ नया शोध किया हो , जिसको मैं व्यवसाय में बदलना चाहता हूँ. पर ऐसा करने के लिए मुझे लाइसेंस लेना पड़ेगा। जिसके लिए जीवन भर का इंतज़ार। इसका परिणाम फ़ोन की देश में कमी , और सरकारी एकाधिकार और फिर से भ्रष्टाचार। जैसे ही ये एकाधिकार समाप्त हुआ , इस क्षेत्र का भ्रष्टाचार भी समाप्त हो गया। वही लोग , और कोई सख्त कानून नहीं।
इसी तरह का कुछ बैंको में भी हुआ।
ये बात हमे समझ नहीं आई पश्चिमी देशो की सफलता के पीछे उनके नागरिकों को मिली सच्ची स्वतन्त्रता है। और वो स्वतन्त्रता है व्यापार करने की स्वतन्त्रता । ये बात हमे समझ में आ गयी , पर 44 साल बाद 1991 में। चीन को ये बात 1978 में ही समझ में आ गई थी. हमने 1991 में लाइसेंस राज की समाप्ति की , और चीन ने 1978 में ही यह काम कर दिया था। यही 13 साल का अंतर आपके सवाल का जबाब है। चीन हमसे 13 वर्ष आगे है। इसलिए वो अधिक अमीर है।