क्या हमारा भविष्य पहले से ही लिखा जा चुका है,अगर लिखा जा चुका है तो हम इसे कैसे बदल सकते हैं?

समय एक बहती जल धारा है व्यक्ति इस के बीच में है जो इसका वर्तमान समझिए। यह धारा अतीत से आकर वर्तमान में होती हुई भविष्य के रूप में बदलती जाती है।

इसलिए भविष्य का रूप कुछ तो अतीत से बनकर आता है,कुछ इसे हमारी उपस्थित बदलती है और कुछ समग्र भविष्य भी इसे बदलता रहता है।

ऐसे में कुछ भी निश्चित नहीं।

शास्त्रों में मान्य कर्म सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य अपने “अतीत” अर्थात पूर्वकृत कर्म से तीन बातें साथ लाता है इसे ही प्रारब्ध कहते हैं। भाग्य तो संचित समस्त कर्मों का खाता है जिनमें से जिन कर्म फलों के कारण ये तीन मिलते उन्हें प्रारब्ध कह देते हैं:

१ शरीर २ आयु और सांसारिक भोग

जो कर्म फल नहीं दे रहे वे संचित कर्म या बोलचाल में भाग्य कहे जाते हैं। इसजन्म के कुछ कर्म प्रारब्ध वश कुछ स्वयं के पुरुषार्थ वश होते हैं।

एक पोस्ट में मैंने लिखा भी है कि भाग्य( इस जन्म के प्रारब्ध ) और पुरुषार्थ में निरन्तर संघर्ष होता रहता है। योग वाशिष्ठ में वशिष्ठ जी राम से कहते हैं कि प्रारब्ध और पुरुषार्थ दो सांड की तरह हैं

जो निरन्तर सिर भिड़ा कर लड़ते रहते हैं,कभी प्रारब्ध ,पुरुषार्थ को तो कभी पुरुषार्थ को पीछे धकेलते रहते हैं।

मोक्ष पुरुषार्थ के सम्बंध में शास्त्र कथन है कि यह इसी जन्म में भी अपने तीव्र ज्ञान जिज्ञासा से,आर्त भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है।तो सीधी सी बात है कि मुक्ति तो भाग्य में लिख कर नहीं आती

इस प्रकार यह संघर्ष अनंत है। मनुष्य ने अब तक जो प्रगति की है वह अपने पुरुषार्थ के बल पर की है।

इससे जाहिर है कि सब कुछ पहले से नहीं लिखा है।लिखा भी नहें जा सकता। यदि ऐसा होगा तो जरा सोचिए कि पास्ट लाइफ कर्म का ही फल मिलता रहे तो नए कर्म नहीं होंगे।और तब एक दिन व्यक्ति का कर्म का खाता बन्द होने से उसे मोक्ष ही मिल जाएगा।

मोक्ष क्या है? संसार में आवागमन के चक्र से मुक्ति ही तो मोक्ष है।इसलिए गत कर्म और नए पुरुषार्थ कर्म का मिश्रण होता रहता है।गत कर्म से मिलने वाले कर्म फल में पुरुषार्थ से संशाधन होते रहते हैं।इसी क्रम में नए कर्म भीबनते रहते हैं जो संचित कर्म के खाते में जमा होते जाते हैं ।

★ भविष्य इस प्रकार हम ही लिखते हैं और हम ही उसे भविष्य में बांचेगे भी पर इसकी इबारत हर बार नई होगी,हर बार अनोखी होगी। इसलिए बर्तमान कर्म अर्थात पुरुषार्थ में लगे रहना चाहिए।कृष्ण ने इसी लिए तो कहा है कि मनुष्य को कर्म करने का “अधिकार” है। भविष्य इसी अधिकार से लिखा जाता है

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