क्या सच में मनुष्य को अपनी करनी का फल भुगतना पड़ता है?
यहाँ दिया गया चित्र एक मादा बिच्छु का है।इसकी अस्थिमज्जा( bone marrow) पर मौजूद ये इसके बच्चे हैं।ये जन्म लेते ही अपनी मां की पीठ पर बैठ जाते हैं और उसके शरीर को ही खाना प्रारम्भ कर देते हैं और तब तक खाते हैं जब तक कि उसकी केवल अस्थियां शेष ना रह जाए।
वो तङपती है,कराहती है लेकिन ये पीछा नहीं छोङते, और पलभर में नही मार देते बल्कि कई दिनों तक यह मौत से बदतर असहनीय पीङा को झेलती हुई दम तोङती है।
लाख चौरासी के कुचक्र में ऐसी ऐसी असंख्य योनियां हैं, जिनकी स्थितियां अज्ञात हैं, कदाचित् इसीलिए भवसागर को अगम, अपार कहा गया है।
कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह भी पूर्व भव मे किए गये कर्मों का ही भुगतान है।
इन्सान इस मनुष्य जीवन में जो कर्म करेगा , विभिन्न प्रकार की असंख्य योनियों में इन कर्मों के आधार से ही उसे दुःख सुख मिलते रहेंगे।
*मनुष्य जीवन दुर्लभ है, यह मिले ना बारम्बार।*
*जैसे तरुवर से पत्ता टूट गया, फिर ना लगता डार।*