क्या शिव जी अपने बेटे गणेश का असली सर फिर से नहीं लगा सकते थे, उन्होंने हाथी का सर ही क्यों लगाया?
यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध होता यदि वे असली सर लगा देते जो कि कटकर भस्म हो चुका था । यदि वे चाहते तो पुराणों के अनुसार दक्ष को बकरे का सर नहीं लगता और वे सती को पुन: जीवित कर देते । मुख्यत: शिव पुराण और भागवत पुराण मे देवी सती पुरी तरह भस्म हो चुकी थी ।
हाथी का सर ही क्यों ??
शिव जानते थे कि उनका यह पुत्र भविष्य मे शुभता और सौभाग्य का देवता होंगे । सनातन धर्म के अनुसार हाथी, शुभता और सौभाग्य का प्रतीक हैंं । ऐश्वर्य का प्रतीक होने केे कारण देवी लक्ष्मी के दो तरफ हाथी होते हैं और उनकी पूजा भी गणेश के साथ होती हैं ।
प्राकृतिक कारण — संसार मे हर जीव स्त्री और पुरुष के मिलन से जन्मा हैंं । गणेश का जन्म केवल पार्वती (स्त्री तत्व) से हुआ था । उनमे पिता शिव का (पुरुष तत्व) का कोई भाग नहीं था । सो इस घटना के बाद गणेश को पिता के अंश / योगदान के रुप मे हाथी का सर मिला जबकि उनका शरीर तो उनकी माता की देन थी ही ।
पुराणों के अनुसार सूर्य के अपराध पर उसका वध करने पर महादेव कोो ऋषि कश्यप ने — भविष्य मे अपने ही पुत्र का सर काटने का शाप दिया । ऋषि का मान रखने के लिए महादेव ने इस शाप को स्वीकार किया । तो वही गजराज / गजासुर नामक हाथी ने शिव से उनके साथ रहने और भविष्य मे उनके काम आने का वरदान मांगा था । जिसके फलस्वरुप इसी हाथी का सर गणेश को लगाया गया । उपर से देवी पार्वती ने अपने शरीर के मैल (लेप / उबटन) से गणेश की रचना की थी जिसके कारण गणेश की बुद्धि मलीन थी और उन्हें बल का अहंकार भी था ।