क्या भगवान राम मांस खाते थे? अगर नहीं तो सीता हरण के समय हिरण का शिकार करने क्यों गए थे? जानिए सच
रामायण काल में दंडकारण्य में एक भयानक राक्षस रहता था, जिसका नाम था मारीच।
मारीच नें एक बार विश्वामित्र जी का यज्ञ भंग करने की कोशिश की थी, तब भगवान् श्रीराम नें यज्ञ की रक्षा करते हुए उसे मानवास्त्र द्वारा पराजित करके दूर फेंक दिया था।
उसके बाद वह दंडकारण्य में रहने लगा। वहाँ वह सुन्दर जीव का रूप लेकर घूमता और शिकार करने आए राजाओं को आकर्षित करके उन्हें मारकर खा जाया करता था।
जब माता सीता नें उस हिरण को देखा, तो आकर्षित होकर उन्होंने श्रीराम से उस हिरण को पकड़ लेने का अनुरोध किया। तब लक्ष्मण जी नें तुरन्त शंका जतायी थी कि ये जीव शायद मारीच है।
इसके पश्चात माता सीता नें भगवान् से कहा कि वे उस हिरण को यदि जीवित पकड़ लाए, तो वे अयोध्या के राजप्रासाद में उसका पालन करेंगी तथा यह हिरण वहाँ की शोभा भी बढ़ायेगा। यदि वे इस हिरण को मृत अवस्था में लाए, तो वे उसके चर्म का प्रयोग आसान के रूप में करेंगीं।
उन्होंने कहीं भी उस हिरण को “खाने” की इच्छा नहीं जतायी।
उसके बाद श्रीराम नें माता सीता का अनुमोदन किया, लेकिन उन्होंने कहीं भी नहीं कहा कि वे उस मृग को खाएंगे।
श्रीराम को भी शक था कि यह कहीं यह हिरण मारीच तो नहीं?
इसके पश्चात उन्होंने हिरण को मारने के लिए प्रस्थान किया।
भगवान् नें लक्ष्मण जी को अधिक सावधानी बरतने को कहा था, साथ ही वातापि की कथा का उल्लेख भी किया था, जिससे पता चलता है कि उन्हें काफी हद तक विश्वास था कि ये कोई मायावी राक्षस है, और भगवान् नें जन्म ही दुष्ट राक्षसों को मारने के लिए लिया था।
अतः, यदि वह पशु असली हिरण होता, तो वे या तो उसे पालते, या उसके चर्म का आसन बनाते। यदि वह पशु मायावी राक्षस होता, तो भगवान् को उसका संहार करना ही था, क्योंकि उनका जन्म ही इसलिए हुआ था।
पर किसी भी कीमत पर वे उसे “खाते” नहीं!