क्या किसी महिला ने रामायण युद्ध में भाग लिया था? जानिए

हाँ.

रामायण मे ताड़का नामक आसुरी ने ऋषि मुनि लोगों पर अत्याचार किये उनके यज्ञ विध्वंश किये उनको गुरुकुल चलाने देने मे अव्यवस्था पैदा की. यह ताड़का मारीच और सुबाहु की माँ थी. यह यक्षिणी थी लेकिन इसका विवाह राक्षस से होने कै कारण राक्षसी बन गयी और आसुरी वृत्ति ही अपना लि. रावण ने इसे अपने अधिकृत सूबे का अधिपति बना दिया.

ऋषि विश्वामित्र इन असुरो से निजात पाने कै लिए राजा दशरथ कै दरबार मे गए. उन्हें पता था की राजा दशरथ न्यायिक सनातनी धार्मिक व्यक्ति है और उनके यहां भगवान विष्णु ने अवतार लिया है राम कै रूप मे. इस तरह कै बलशाली राक्षसों को उनके बीणा कोई भी नहि हरा पायेगा. अतः राजा से यज्ञ की सुरक्षा हेतु राम की मांग की. राजा ने अनमने मन से दोनो राजकुमारों को भेजा और पिता की तरह उनका संरक्षण करने का आश्वासन लिया. राम लक्ष्मण को देखते ही ताड़का आसुरी ने इन पर आक्रमण किया. उसके साठ दोनो बलवान असुर पुत्र भी थे. श्री राम ने ताड़का को मार डाला सुबाहु का भी वध कर दिया और मारीच को ऐसे ही हल्के फुल्के बान मारकर समुद्र मे फेंक दिया जो कई सो योजना दूर था. लक्ष्मण ने समस्त राक्षस सेना को वध कर दिया.

दूसरा उदाहरण सुपर्णखा का है. उसने युद्ध तो नहि किया लेकिन राम रावण युद्ध और लंका विनाश की भूमिका बांध डी. साठ ही सीता पर हमला कर लहै जाने की कोशिश की जिसके फलस्वरूप लक्ष्मण ने उसका नाक कान काटकर अपमानित कर दिया.

ज़ब हनुमान समुद्र छलाँगकर लंका जा रहे थे तब सुरसा नम की एक यक्षिणी ने भी हनुमान पर आक्रमण किया उनके बल बुद्धि को नापने कै लिए और हनुमान अपने बुद्धि विवेक से उसे परास्त कर आगे बढ़ गए और इसका आशीर्वाद भी लिया. सूंदरकाण्ड मे ही एक और राक्षसी भी हनुमान की परछाई पकडकर उनको खत्म करने की कोशिश करती है. इसको हनुमान जी एक घुस्सा मरते है और मर जाती है. लंका पहुँचते हे तो वहां पर रात मे छुपकर घुसते है सीता की खोज कै लिए तब लंकिनी नमकी राक्षसी ने हनुमान को रोक लिया और फिर हनुमान ने उसे मार डाला ज़ब उसने मच्छर रूप धरे हनुमान को पकडकर मरना चाहा. इसने ये भी पहचान लिया की रावण वध का समय पास है.

अतः प्रमुख रूप से ताड़का ही एक औरत थी जो लड़ी अन्य सभी तो परस्तिथिवश विशेष प्रयोजनों से अपने कुकृत्यों मे सलंग्न थी और इन्होने युद्ध मे भाग नहि लिया परन्तु इनके खतरे को मामूली नहि माना जा सकता.

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