क्या आपको पता है गिलहरी की पीठ पर पाँच धारियों का रहस्य

रामायण काल का प्रसंग है । जब लंकापति रावण ने छदम् वेश धारण कर सीता का हरण कर लिया और उसे ले जाकर लंकापुरी की अशोक वाटिका में रखा । सीता को खोजते – खोजते राम लक्ष्मण की भेंट वानरराज सुग्रीव से हुई । सुग्रीव की सेना के महाबली हनुमान समुद्र लाँधकर सीता का पता लगाकर आये तब पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी वानर वीरों के सहयोग से समुद्र पर पुल बाँधने लगे ।

सभी भालू बन्दर अपनी क्षमतानुसार छोटे – बड़े पत्थर ले आकर पुल निर्माण में सहयोग प्रदान कर रहे थे । समुद्र के किनारे एक पेड़ पर एक गिलहरी रहती थी । वह भी भगवान श्री राम चन्द्र जी के काज ( कार्य ) में हाथ बटाने गयी अर्थात् सहयोग करने गयी ।

वह गिलहरी समुद्र के पानी में डुबकी लगाती और अपने रोयेंदार ( बाल युक्त ) शरीर में बालू ( रेत ) के कण चिपकाकर लाती और पुल पर जाकर अपने शरीर को जोर से हिलाती ताकि जो बालू उसके शरीर में चिपका है वह पुल पर गिर जाये और पुल मजबूत हो ।

उसके कार्य को देखकर भगवान श्रीराम के हर्ष ( प्रसन्नता ) की सीमा न रही । उसके प्रेम को देखकर वे प्रेम रस के वशीभूत होकर अपनी गोद में उठा लिया और प्यार से सहलाते हुए बोले – तुम नन्ही – सी जान हो किन्तु तुम्हारे सहयोग की भावना और मेरे प्रति तुम्हारा यह समर्पित प्रेम अतुलनीय है । अत : संसार में तुम जहाँ कहीं भी रहोगी , लोग तुम्हें देखकर मुझे याद करेंगे और राम की अर्थात् मेरी परम भक्त मानकर तुम्हें सदैव अच्छी दृष्टि से देखेंगे और धन्य कहेंगे ।

लोग कहते हैं जब भगवान श्री राम ने उपरोक्त बचन कहकर उस गिलहरी को सहलाया तो उनकी अंगुलियों के निशान धारियों ( लाइनों ) के रूप में अंकित हो गये । तभी से सभी गिलहरियों के शरीर पर निशान बने।

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