कौन सी बात भारतीयों को विदेशियों के सामने कमजोर बनाती है? जानिए

भारतियों कि तुलना किस विदेश से कर रहे हो तब ही कह सकते है कि भारतीय कमजोर है या नहि. अगर यूरोप या usa से या अरब के कई इस्लामिक देश जैसे सऊदी अरब टर्की दुबई आदि से करोगे तो भारतियों का कॉंफिडेंस हिला हुआ मिलेगा. लेकिन पाकिस्तान बर्मा बंगलादेश श्रीलंका नेपाल अफ़ग़ानिस्तान सीरिया उत्तर कोरिया मध्य एशिया के बहुत से देश, तजाकिस्तान, क्रज़ाखिस्तान किर्दीस्तान आदि, मालदीव मारीशस, आजकल के इराक से करोगे तो भारतीय इनसे कमजोर नहि मिलेंगे. बेहतर ही है.

जो समस्याएं भारत मैं है दक्षिण एशिया के सभी देशों मैं है लगभग एक सा ही वातावरण है. चीन जापान सिंगापूर आदि कि बात अलग है उनका प्रशाशनिक डांचा ही अलग है. फिर भी भारत मैं सुधार कि मानवीयता कि, सचाई कि अपनाने कि जरूरत है. समानता के लिए आरक्षण को मिटाकर उसकी जगह जाती को आधार न मानकर आर्थिक स्थिति को आधार मानकर गरीब असहाय दूर दराज के लोगों को मानवीय मदद डि जाय. सरकारी नौकरी को जिम्मेदार बनाया जाय. पक्षपात और शोषण जाती धर्म क्षेत्र लिंग के आधार पर रोका जाय.

लेकिन यहां भारत मैं तो भेड़िये ही अच्छे नागरिक माने जाते है. पहले महिला का शोषण किया फिर उसी पर मानहानि का दावा ठोक ड़िया. अभी हाल ही मैं mj अकबर के मानहानि के केस मैं फैसला आया है और हिम्मतवाली औरत को अत्याचार को बताने के खिलाफ जलालत झेलने और उजागर करने पर न्याय का एक अंश मिला. अभी अपराधी को अपराध कि सजा पर तो मामला ही दाखिल नहि हुआ बल्कि पीड़ित को अपराधी बनाने कि साज़िश ही नाकाम हुयी है. यही है भारत. सजा अपराधी को मिलनी है लेकिन पीड़ित को ही अपराधी ने कोर्ट मैं घसीट लिया और बगैरत आदमी इज्जत लुटने कि फीस वसूल करने न्यायालय गया. कोई कमजोर गरीब तो चुप सह ही सकता है लेकिन किसी ने हिम्मत कि और तमाशा किया तथा mj का तमाशा बना दिया. मंत्रालय गया और जो चेहरा पर नकाब ओढ़ लिया ठा वो उतर गया.

इस तरह कि बहुत विसंगति यहां है. दोमुहानपन बहुत है. पता नहि चलता कि जीजाजी जमींदार है या किसान है लेकिन किसान आंदोलन मैं नहि है. पिंकी जोरशोर से खुद गयी है और किसानो के लिए दहाड़ मारकर रोटी दिखती है पप्पू यो दौड़ भाग मैं ही समय खर्च कर रहा है. अब तो इस बात का भी शक है कि जो आंदोलन मैं है वे किसान है भी या आढ़तिये दलाल है. जिस तरह गणतंत्र दिवस को हिंसा हुयी, ज़िस कद्र धरना स्थल के पास कि जनता परेशान है. ज़िस तरह धमकी डि जा रही है कि सीमा से किसान के बेटों को वापिस बुला लेंगे और दो तीन घंटे मैं चीन पाकिस्तान दिल्ली आ जायेंगे उससे लगता है कि ये दलाल ही बैठे है. इनमे से किसीका लड़का सीमा पर नहि है. अगर चीन पाकिस्तान आये तो इंसीमा के राज्यों कि स्थिति बंगलाडेढ़ जैसी होंगी ज़ब पंजाबियों ने नस्ल ही बदल डि थी और जान बचाकर भारत मैं भाग आये थे बंगलादेधी. अब चीन से तो पाकिस्तान भी डरा हुआ है.

कोनसा किसान ऐसा है जो तीन महीने धरना देगा और उसका घर चलता रहेगा. इतनी आमदनी किसान पर हो तो फ़ौज मैं सीमा पर अपने प्राण प्यारे को नहि भेजेगा. कितने शहरियों के बच्चे सीमा पर होते है. ये सब शहरी ही जो कमा धमाका के इकट्ठा करके है बैठे है. अब ज़िस तरह रेल रोको एपजना इन नेताओं कि असफल है उससे लगता है कि किसान आंदोलन नहि अनदोलन जीवियों कि आजीविका चल रही है. जो भ्रस्टाचर से कमाया धन है उसे सही जगह खर्च करने करवाने का मेकेनिज़्म है. शाहीन बाग भी ऐसा ही प्रयास ठा सरकार को बदनाम कनेक्शन का. यह दूसरी स्टेज है.

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