कौनसे अकाल में लोगों को पेड़ों की छाल खानी पड़ी थी?
राजस्थान या थार के इतिहास का सबसे भयंकर अकाल जो वर्ष 1898 में पड़ा ।
विक्रमी संवत 1956 होने के कारण इसे छप्पनिया अकाल भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस अकाल में राजस्थान के दस लाख लोग भूख के कारण ही दम तोड़ गए. लोकगीतों व लोकजीवन में आज भी इस अकाल की भीषणता का वर्णन मिलता है ।
वि. सं. 1956 में राजस्थान के अधिकांश भूभाग में वर्षा की एक बूंद भी नहीं गिरी| नतीजा वर्षा ऋतू की खेती पर निर्भर राजस्थान में वर्षा ना होने के कारण किसान फसल बो ही नहीं सके| इस कारण जहाँ मनुष्य के खाने हेतु अनाज का एक दाना भी पैदा नहीं हुआ, वहीं पशुओं के लिए चारा भी उपलब्ध नहीं हुआ|
इस तरह खाने के लिए अनाज, पशुओं के लिए चारा और पीने के लिए वर्षा जल संचय पर निर्भर रहने वाले स्थानों पर पीने के लिए पानी की घोर कमी के चलते राजस्थान के लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया| भूख व प्यास से पीड़ित पलायन करते लोग व पशु रास्तों में ही मरने लगे| उस अभूतपूर्व अकाल ने पूरे राजपुताना में हाहाकार मचा दिया| राजस्थान के इतिहास में यह “छपनिया अकाल” के नाम से आज भी लोगों के जेहन में है| बुजुर्ग बतातें है कि उस छपनिया अकाल में अनाज उपलब्ध ना होने के चलते लोगो को पेड़ों की सूखी छाल तक खाना पड़ा।