कुंती की मृत्यु कैसे हुई?

कुंती की मृत्यु- महाभारत युद्ध के लगभग 15 साल बाद परिवार के तीन वरिष्ठ गांधारी, कुंती और धृतराष्ट्र वन की ओर प्रस्थान करते हैं। संजय भी उनके साथ होते हैं।

करीब 3 साल तक गंगा किनारे एक घने वन में बनी छोटी सी कुटिया में सभी रहते हैं। एक दिन की बात है धृतराष्ट्र गंगा में स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके जाते ही जंगल में आग लग जाती है, जिसकी वजह गांधारी, कुंती और संजय को कुटिया छोड़नी पड़ती है। वे सभी धृतराष्ट्र के पास आते हैं, ये देखने कि कहीं उन्हें तो कोई खतरा नहीं है।

संजय उन सभी को जंगल से चलने के लिए कहता हैं, क्योंकि पूरा जंगल आग से जल रहा था। लेकिन धृतराष्ट्र उन्हें कहता है कि यही वो घड़ी है जब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। तीनों लोग वहीं रुक जाते हैं और उनका शरीर उस आग में झुलस जाता है।

संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं। इस तरह एक साल बाद नारद मुनि आकर युधिष्ठिर को उनके परिवारजनों की मृत्यु का दुखद समाचार देते हैं। युधिष्ठिर वहां जाकर उनके अंतिम संस्कार का क्रियाकर्म कर, पिंडदान आदि कर्म करते हैं।

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