किस जगह पर बकरी की बलि दी जाती है? जानिए
चौरी-चौरा की क्रांतिकारी धरती पर देवीपुर गांव में मां तरकुलहा (तरकुला) देवी मंदिर स्थित है। चैत्र रामनवमी के दूसरे दिन से इस मंदिर में भक्त बकरों की बलि देते हैं। प्रसाद के रूप में यहां मीट मिलता है। वैसे बलि देने की परंपरा देश के कई मंदिरों में है, लेकिन जिस प्रकार यहां बलि दी जाती है, वह यहां की खास विशेषता है।
भक्त मंदिर परिसर में ही हंडिया (मिट्टी) के बर्तन में मीट को पकाते हैं और लिट्टी के साथ इसे खाते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां महाकाली के रूप में यहां विराजमान जगराता माता तरकुलही पिंडी के रूप में विराजमान हैं। इस पिंडी को महान क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह के पूर्वजों ने स्थापित किया था। बंधू सिंह ऐसे व्यक्ति थे, जो अंग्रेजों की बलि देने के बाद इसी पिंडी पर उनका रक्त चढ़ाते थे। ऐसा करने से उन्हें अलौकित शक्ति का एहसास होता था।
मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यहां प्रसाद में मिलने वाला बकरे का मांस है। गोरखपुर से करीब 20 किमी दूर चौरी-चौरा में घने जंगलों के बीच यह मंदिर स्थापित है। इसमें डुमरी रियासत के मुखिया बंधू सिंह रहते थे। जंगल के पास से ही मझना नाला गुजरता है। नाले की तट के पास बंधू सिंह ताड़ के पेड़ के नीचे पिंड स्थापित कर देवी की उपासना करते थे।