कानपुर का एक पवित्र स्थल जो रामायण कथा से है जुड़ी

राम की कथा, रामायण से तो हम सभी वाकिफ है। और हम ये भी जानते है कि रामायण की कथा अयोध्या क्षेत्र से शुरू होती। और एक चित्रकूट, पंचवटी लंका इत्यादि होते हुए अयोध्या पर समाप्त होती है। 

लेकिन क्या आपको मालूम है अयोध्या नगरी से लगभग 230 किमी दूर स्थित आज के कानपुर शहर का भी रामायण की कथा में बहुत अधिक महत्व है। अगर मालूम है तो बहुत अच्छी बात है लेकिन जिन्हें नहीं मालूम है उन्हें आज हम बताते है। 

बात तब की है जब भगवान श्री राम रावण का संहार करके सीता को लेकर वापस अयोध्या आते है। राम का राज्याभिषेक होता है और वो अयोध्या में रामराज्य की स्थापना करते है। और तभी एक धोबी द्वारा सीता की पवित्रता पर प्रश्न उठाया जाता है और उन्हें सीता का त्याग करने को विवश किया जाता।

राजधर्म का पालन करते हुए राम सीता का त्याग करते है। और लक्ष्मण को आदेश देते है कि वो सीता को राज्य से बाहर छोड़ कर आए। 

इस पर लक्ष्मण अपने भाई और अयोध्या के राजा के आदेश का पालन करते हुए सीता को अयोध्या राजधानी के सीमा पर छोड़कर चले जाते है। 

और सीता माता भटकते भटकते महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में पहुंच जाती है और पृथ्वी में समाने तक का जीवन यहीं व्यतीत करती है। लव कुश का जन्म भी इसी आश्रम में होता है। 

राम की कथा, रामायण से तो हम सभी वाकिफ है। और हम ये भी जानते है कि रामायण की कथा अयोध्या क्षेत्र से शुरू होती। और एक चित्रकूट, पंचवटी लंका इत्यादि होते हुए अयोध्या पर समाप्त होती है। 


लेकिन क्या आपको मालूम है अयोध्या नगरी से लगभग 230 किमी दूर स्थित आज के कानपुर शहर का भी रामायण की कथा में बहुत अधिक महत्व है। अगर मालूम है तो बहुत अच्छी बात है लेकिन जिन्हें नहीं मालूम है उन्हें आज हम बताते है। 

बात तब की है जब भगवान श्री राम रावण का संहार करके सीता को लेकर वापस अयोध्या आते है। राम का राज्याभिषेक होता है और वो अयोध्या में रामराज्य की स्थापना करते है। और तभी एक धोबी द्वारा सीता की पवित्रता पर प्रश्न उठाया जाता है और उन्हें सीता का त्याग करने को विवश किया जाता।

राजधर्म का पालन करते हुए राम सीता का त्याग करते है। और लक्ष्मण को आदेश देते है कि वो सीता को राज्य से बाहर छोड़ कर आए। 

इस पर लक्ष्मण अपने भाई और अयोध्या के राजा के आदेश का पालन करते हुए सीता को अयोध्या राजधानी के सीमा पर छोड़कर चले जाते है। 

और सीता माता भटकते भटकते महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में पहुंच जाती है और पृथ्वी में समाने तक का जीवन यहीं व्यतीत करती है। लव कुश का जन्म भी इसी आश्रम में होता है। 

हम बात कर रहे है इसी आश्रम की। जो की वर्तमान के कानपुर नगर में स्थित है। इस आश्रम को बिठूर आश्रम के नाम से जाना जाता है। 

ये आश्रम कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन से लगभग 25 किमी की दूरी पर स्थित है। गंगा के तट पर स्थित आश्रम का शांत और आध्यात्मिक वातावरण बहुत ही मनमोहक है।

यहां महर्षि वाल्मीकि का एक छोटा सा मंदिर और माता सीता और लव कुश की प्रतिमा स्थित। यहां पर एक प्राचीन वट वृक्ष भी है जिसमें अश्वमेध यज्ञ के घोड़े और हनुमान जी को बांधा गया था।

ये वही स्थान है जहां पर राम की सेना और लव कुश के मध्य युद्ध हुए था और अंत में इसी स्थान पर माता सीता ने अपने माता पृथ्वी की गोद में समाधि ग्रहण की थी। 

शहर की शोर गुल से दूर बिठूर आश्रम बहुत ही मनमोहक और मन को प्रसन्न करने वाला है। गंगा के तट पर उसकी कल कल करती धारा की ध्वनि हमारे मन मस्तिष्क को आध्यात्मिक और मानसिक शांति एवं संतुष्टि प्रदान करती है। 

जब भी कानपुर जाना हो तो एक बार अवश्य यहां पहुंच कर आध्यात्मिक शांति का अनुभव प्राप्त करे। 

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