उज्जैन में स्थित(52) बावन कुंड क्यों बनाए गए थे? जानिए वजह

भव्य ‘कालियादेह महल’ जो आज सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है, उज्जैन से उत्तर की ओर, 6 मील की दूरी पर क्षिप्रा नदी में एक द्वीप के रूप में स्थित है।

मुसलमानों के आगमन से पहले, इसे ब्रह्म के नाम से जाना जाता था। यहां स्नान करने के लिए घाट बनाए गए थे, और पीछे की तरफ मंदिर था ।

यह महल खिलजी शासक ने गर्मियों के मौसम में विश्राम करने के लिए बनवाया था। इस महल के चारो और हमेशा पानी भरा रहता है।इसलिए इस भवन को एक टापू पर बना हुआ माना जाता है।

भवन के नज़दीक ही 52 कुंड हैं, ये 52 कुंड इस तरह से बनाये गए थे कि नदी का पानी जब इन कुंडो में से होकर गुजरता था, तो ठंडा हो जाता था।अर्थात् ये 52 कुंड गर्म पानी को ठंडा करने के लिए बनवाये गए थे।

खिलजी शासक मुहम्मद खिलजी ने 1458 में इस महल का निर्माण करवाया था। यद्यपि इसकी मौलिक संरचना में अब तक कई बदलाव किये जा चुके हैं।

मांडू के सुल्तान ने यहां 52 कुंडों का निर्माण करवाया था। पत्थरों से बने ये 52 कुंड आपस में एक दूसरे को जोड़ते हैं। इन कुंडों में एक कुंड से दूसरे कुंड में पानी जाता रहता है।

लोगों का ऐसा मानना है कि इन कुंडों में स्नान करने से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है। चैत्र मास की भूतनी एकादशी के दिन यहां बहुत बड़ा मेला लगता है, दूर- दूर से प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति यहां आते हैं।

बाहरी बाधा से पीड़ित लोगों को इस बाधा से मुक्ति दिलाने के लिए पहले यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है। तांत्रिक पूजा अर्चना के बाद कुंड के समीप स्थित भैरव मंदिर में क्रिया कराई जाती है। मान्यता है कि यहां कुंड में स्नान और पूजा अर्चना से प्रेत बाधा से मुक्ति मिल जाती है।

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