‘इंटरनेट आफ थिंग्स’ का क्या अभिप्राय है ?

जब किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर कोई अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, मैकेनिकल मशीन या अन्य कुछ भी जुड़ा हो और ये डिवाइस किसी नेटवर्क से इस प्रकार जुड़ा हो जिससे उन सभी का डेटा उस नेटवर्क पर ट्रान्सफर हो पाए, तब इस पूरे तंत्र को ही इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आईओटी) कहा जाता हैं।[1] इस तंत्र में फिर न तो मनुष्य की ही आवश्यकता होती है न कंप्यूटर की ही, ये तंत्र अपने आप में ही एक पूर्ण ऑटोमेटिक मशीन बन जाता हैं।

आईओटी की परिभाषा से इतर यदि हम आसान भाषा में समझें तो आईओटी एक तरह की जुगाड़बाजी है, अपनी आवश्यकतानुसार हम इसे एडवांस लेवल की जुगाड़बाजी भी बना सकते हैं, जिससे हमारा कोई काम आसान हो जाए।

इसका उद्देश्य क्या है?

आईओटी की मदद से हम किसी भी वस्तु को स्मार्ट बना सकतें हैं। यदि वो वस्तु कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है तब तो और ज्यादा आसानी है लेकिन यदि वो इलेक्ट्रॉनिक नही भी है तब भी कोई समस्या वाली बात नही हैं।

स्मार्ट बनाने का अर्थ यहाँ ये है की या तो वो वस्तु अपना काम स्वयं करने लग जाए या फिर कम-से-कम हमें अपनी वर्तमान स्थिति के बारे में सूचना दे दे।

आवश्यक चीज़े

इस जुगाड़बाजी को सफल बनाने के लिए अधिकतर निम्न चीज़ों की आवश्यकता तो होती ही हैं।

सेंसर
डिवाइस
क्लाउड (यदि आवश्यक हो तो)
यूजर इंटरफ़ेस (यदि आवश्यक हो तो)
उपरोक्त चीजों का अच्छा ज्ञान
इन सबको आपस में परस्पर इस प्रकार जोड़ा जाता है कि वो कुछ उपयोगी बन जाए। (सेंसर एक डिवाइस से जोड़ा जाता है उस डिवाइस को प्रोग्रामिंग के जरिये किसी क्लाउड से जोड़ा जाता है और क्लाउड पर सेंसर द्वारा भेजा गया डेटा हम किसी यूजर इंटरफ़ेस पर देख सकते हैं)

यहाँ एक बात ध्यान देने वाली ये है कि इसके नाम में इंटरनेट शब्द है तो इसका अर्थ ये नही है की इसके लिए हमेशा इंटरनेट की आवश्यकता होती है। जैसे यदि हमें आईओटी की मदद से कोई ऐसी चीज़ बनानी हो जिसमें इंटरनेट की बिलकुल भी आवश्यकता न हो तो वहां हम क्यों इंटरनेट का इस्तेमाल करेंगे।[2]

इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स के कुछ अनुप्रयोग

कैसा हो अगर आपका घर में रखा गमला आपको बताने लगे की आपने जहाँ मुझे रखा है वहां पर धूप की मात्रा पर्याप्त नही हैं।[3]

इससे भी एक चरण आगे चलते हैं अब आपका गमला स्वयं ही निर्धारित करने लगे की कब उसे पानी चाहिए कब नही।[4]

इसी तरह कोरोना का दौर चल रहा है आप नही चाहते कि कोई भी आकर आपके घर की घंटी बजाये[5] तो आईओटी यहाँ भी काम आ सकता हैं।

ये उदाहरण तो बहुत सामान्य से हैं जिन्हें अधिकतर कॉलेज के विद्यार्थी अपने प्रोजेक्ट के लिए बनाते रहते हैं।

मेरा अनुभव

मैंने भी दो वर्ष पहले एक 6 हफ्ते की आईओटी की ट्रेनिंग ली थी तब वहां हमने भी एक प्रोजेक्ट बनाया था।

उस प्रोजेक्ट को हमने क्लाउड से जोड़ रखा था जिससे हमें आसपास वातावरण में मौजूद एलपीजी, कार्बन मोनोऑक्साइड, धुआं और तापमान आदि की जानकारी इन्टरनेट से भी मिल जाती थी।

ये उपर जो चित्र आप देख रहें हैं वो ऐडाफ्रूट क्लाउड का है जिसपर सभी सेंसरों का डेटा आता था जो इस प्रकार दिखता था।

हैं न ये आईओटी मजे की चीज़,

लेकिन ज्यादा मज़ा भी कभी-कभी सजा बना जाता है।

आईओटी की चिंताएं

आईओटी मजेदार है, सुविधाजनक है परन्तु अभी ये इतना सुरक्षित नही है, इसकी सबसे बड़ी चिंता सिक्योरिटी ही है।

वर्ष 2015 में सायनैक नामक एक सिक्योरिटी फर्म ने 16 होम ऑटोमेशन में प्रयोग होने वाले उपकरणों का एनालिसिस किया था।[6]

रिसर्चर कॉलबे मूरे, जिन्होंने इस एनालिसिस की रिपोर्ट दी थी, ने बताया कि वो मात्र 20 मिनट के अंदर ही सभी 16 डिवाइस को हैक करने में सक्षम थे।

इसलिए मेरे अनुसार अभी थोडा वक्त लगेगा आईओटी को आम लोगो के जीवन का हिस्सा बनने में, अभी बड़ी-बड़ी कंपनियां भी लगी हुई है इस पर रिसर्च करने में जिससे इसे ज़्यादा सुरक्षित और अधिक सुविधाजनक बनाया जा सके।

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