आप पानी किस तरह से पीते हैं, गट-गट कर के या घूंट-घूंट कर

पानी हमेशा घूँट-घूँट(पानी को काट ‌कर) और बैठ कर पिएं !पानी सदैव धीरे-धीरे पीना चाहिये अर्थात घूँट-घूँटकर पीना चाहिये, यदि हम धीरे-धीरे पानी पीते हैंतो उसका एक लाभ यह है कि हमारे हर घूँट में मुँह कीलार पानी के साथ मिलकर पेट में जायेगी और पेट मेंबनने वाले अम्ल को शान्त करेगी क्योंकि हमारीलार क्षारीय होती है और बहुत मूल्यवान होती है।हमारे पित्त को संतुलित करने में इस क्षारीय लारका बहुत योगदान होता है।

जब हम भोजन चबाते हैंतो वह लार में ही लुगदी बनकर आहार नली द्वाराअमाशय में जाता है और अमाशय में जाकर वह पित्तके साथ मिलकर पाचन क्रिया को पूरा करता है।इसलिये मुँह की लार अधिक से अधिक पेट में जायेइसके लिये पानी घूँट-घूँट पीना चाहिये और बैठकरपीना चाहिए।कभी भी खड़े होकर पानी नहीं पीना चाहिए
( घुटनों के दर्द से बचने के लिए ) ! कभी भी बाहर सेआने पर जब शरीर गर्म हो या श्वाँस तेज चल रही होतब थोड़ा रुककर, शरीर का ताप सामान्य होने परही पानी पीना चाहिए। भोजन करने से डेढ़ घंटापहले पानी अवश्य पियें इससे भोजन के समय प्यासनहीं लगेगी.

आयुर्वेद के अनुसार पानी हमेशा शरीर के तापमान से ठंडा नहीं होना चाहिए। जितना हमारे शरीर का तापमान होता है या गर्म रहता है उतना ही आपका पानी भी गर्म होना चाहिए। यानी आप नियमित रूप से गुनगुना पानी पी सकते हैं। दरअसल, गर्मियों में लोग फ्रीज का ठंडा पानी पीना पसंद करते है। लेकिन ये शरीर के लिए काफी नुकसानदेह होता है। बहुत ज्यादा ठंडा पानी पीना भी शरीर के लिए दिक्कतें पैदा करती हैं। ठंडा पानी पाचन संबंधी समस्‍याएं उत्‍पन्‍न कर सकता है। कब्‍ज की समस्‍या हो सकती है। इसलिए बहुत ज्यादा ठंडा या बर्फ वाले पानी पीने के बजाए नॉर्मल पानी या गुनगुना पानी ही पीना चाहिए।

प्रातः काल उठते ही सर्वप्रथम बिना मुँह
धोए, बिना ब्रश किये कम से कम एक गिलास पानी
अवश्य पियें क्योंकि रात भर में हमारे मुँह में
Lysozyme नामक जीवाणुनाशक तैयार होता है जो
पानी के साथ पेट मे जाकर पाचन संस्थान को
रोगमुक्त करता है।
सुबह उठकर मुँह की लार आँखों में भी लगार्इ जा
सकती है चूंकि यह काफी क्षारीय होती है इसलिए
आँखों की ज्योति और काले सर्किल के लिए काफी
लाभकारी होती है। दिन भर में कम से कम 4 लीटर
पानी अवश्य पियें, किडनी में स्टोन ना बने इसके
लिये यह अति आवश्यक है कि अधिक मात्रा में
पानी पियें और अधिक बार मूत्र त्याग करें।
पानी कितना पियें ?
आयुर्वेद के अनुसार सूत्र – शरीर के भार के 10 वें भाग
से 2 को घटाने पर प्राप्त मात्रा जितना पानी
पियें ।
उदाहरण: अगर भार 60 किलो है तो उसका 10 वां
भाग 6 होगा और उसमें से 2 घटाने पर प्राप्त मात्रा
4 लीटर होगी ।
लाभ – कब्ज, अपच आदि रोगों में रामबाण पद्धति है
मोटापा कम करने में भी सहायता होगी, जिनको
पित्त अधिक बनता है उनको भी लाभ होगा।

सुबह उठते ही पानी पियें, बिना कुल्ला किये हुये, इसे ऊषापान कहते हैं। यदि ताँबे के बर्तन में रात भर का रखा जल हो तो अच्छा, नहीं तो जल गुनगुना कर लें। मात्रा लगभग एक लीटर, घूँट-घूँट कर और धीरे धीरे।

  • आयुर्वेद आचार्य कहते हैं, पानी खाना और आहार पीना चाहिए। अर्थात, पानी घुट घुट आराम से पियें, और आहार को इतना चबाएं कि वह पीने जितना तरल हो जाये।

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