अंडरवाटर रिसर्च से खुलेगा रामसेतु का राज!

राम सेतु जिसे दुनिया भर में एडम्स ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है, अब उसकी उम्र जांचने के लिए अंडरवाटर रिसर्च प्रोजेक्ट को अनुमति दी गई है. यह अंडरवाटर रिसर्च नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशियानोग्राफी (NIO) के साइंटिस्ट करेंगे. इस रिसर्च को करने के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के अधीन आने वाले सेंट्रल एडवायजरी बोर्ड ने इस प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी दी है.

संस्कृति और पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल ने बताया कि राम सेतु के बारे में अनुसंधान करने के लिए समुद्री विज्ञान संस्था को ASI ने अनुमति दे दी है. तीन विषयों पर रिसर्च की जाएगी. रिसर्च के दौरान रामसेतु को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा. वैज्ञानिक बिना किसी इकोलॉजिकल डिस्टरबेंस के अपना रिसर्च वर्क करेंगे. ये फैसला एक उच्चस्तरीय कमेटी ने लिया है, इसमें तमाम विषयों के एक्सपर्ट शामिल थे.

जब इस बारे में नेता और बजरंग दल के संस्थापक अध्यक्ष विनय कटियार से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस रिसर्च और काम का विरोध करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है. इसमें पहले ही बता दिया गया है कि रामसेतु को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा. साथ ही इसके आसपास के समुद्री वातवारण को भी किसी तरह की क्षति नहीं पहुंचेगी तो विरोध करने या सवाल उठाने का मामला खत्म हो जाता है.

रामसेतु को लेकर दुनिया भर में कई तरह की चर्चा होती आई है. भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार इसे भगवान राम ने बनवाया था. जबकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इसे प्रकृति ने बनाया था. आखिरकार 50 किलोमीटर लंबा सेतु बना कैसे. 50 किलोमीटर की ये दूरी तमिलनाडु के रामेश्वरम आइलैंड से लेकर श्रीलंका के मन्नार आइलैंड तक की है.

भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार राम सेतु का निर्माण भगवान राम की वानर सेना ने किया था. ताकि वो श्रीलंका में रावण के चंगुल से माता सीता को आजाद कराकर ला सकें. लेकिन रामेश्वरम से श्रीलंका के मन्नार आइलैंड तक समुद्र का पानी छिछला है. इस बीच, काफी मूंगे के द्वीप हैं और रेत के टीले हैं.

कुछ महीनों पहले यह खबर आई थी सेतु बना कैसे? इसके बाद वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट राज भगत पलानीचामी ने जीआईएस और रिमोट सेंसिंग से पता लगाया है कि आखिर राम सेतु कैसे बना. राज भगत कहते हैं कि आमतौर पर लोगों को राम सेतु ब्रिज की सैटेलाइट तस्वीर देखकर धोखा होता है कि रामेश्वरम और मन्नार आइलैंड के बीच स्थित टोम्बोलो सेक्शन मानव निर्मित है लेकिन इस जगह पर प्रकृति का एक अलग खेल है.

असल में यहा पर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की लहरें पहुंचती ही नहीं हैं. यहां पर भारत के दक्षिण-पूर्व में स्थित पाल्क स्ट्रेट (पाल्क खाड़ी) और मन्नार की खाड़ी की लहरें रेत के टीलों और मूंगों के द्वीपों का निर्माण करते और बिगाड़ते हैं. यह जगह बाकी समुद्री इलाके से छिछली है.

मन्नार की खाड़ी और पाल्क खाड़ी की लहरें विपरीत दिशा में एक-दूसरे से टकराती हैं. इससे रेत के टीले बनते बिगड़ते रहते हैं. यहां पर मन्नार की खाड़ी 650 मीटर गहरी है. जबकि, पाल्क खाड़ी 15 मीटर. भारत और श्रीलंका समुद्र के अंदर मिट्टी के एक ही हिस्से के दो भाग हैं. जो आपस में जुड़े हुए हैं. इनका जुड़ाव एक छिछली और ऊंची जगह पर होता है. जिसपर मन्नार और रामेश्वरम आइलैंड्स समेत कई द्वीप बने हैं, जो एक सेतु जैसे दिखाई देते हैं.

राम भगत की स्टडी के मुताबिक भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र के नीचे एक बड़ा जुड़ाव है. यह जुड़ाव बहुत गहरा नहीं है. इसलिए पाल्क खाड़ी और मन्नार की खाड़ी की लहरें यहां आपस में टकराती रहती है. अगर ये टकराव बंद हो और समुद्र का जलस्तर थोड़ा कम हो तो राम सेतु ज्यादा दिखाई देगा. लेकिन समुद्र का स्तर बढ़ता है तो बीच में दिखने वाले रेत के टीले भी दिखना बंद हो जाएंगे.

राजभगत पलानीचामी की स्टडी ने तो रामसेतु को प्राकृतिक बताया है. अब ASI की जांच के बाद पता चलेगा कि रामसेतु की उम्र कितनी है. हो सकता है इस रिसर्च के दौरान साइंटिस्ट्स को कोई ऐसा पौराणिक प्रमाण मिल जाए जो वानर सेना द्वारा बनाए गए इस सेतु की कहानी को सही स्थापित करता हो.

संस्कृति और पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल ने बताया कि राम सेतु के बारे में अनुसंधान करने के लिए समुद्री विज्ञान संस्था को ASI ने अनुमति दे दी है. तीन विषयों पर रिसर्च की जाएगी. रिसर्च के दौरान रामसेतु को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा. वैज्ञानिक बिना किसी इकोलॉजिकल डिस्टरबेंस के अपना रिसर्च वर्क करेंगे. ये फैसला एक उच्चस्तरीय कमेटी ने लिया है, इसमें तमाम विषयों के एक्सपर्ट शामिल थे

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